गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

ऐसे से हुई थी महात्मा गांधी की हत्या

- जयशंकर मिश्र सव्यसाची
विभागाध्यक्ष - योग संदेश विभाग
 नोआखाली में आमकी नाम का एक गांव है। वहां महात्मा गांधी के लिए बकरी का दूध कहीं न मिल सका। श्रीमनु बहिन ने कहा- सब तरफ तलाश करते-करते जब मैं थक गयी, तब आखिर मैंने बापू को यह बात बतायी। बापूजी कहने लगे- तो इससे क्या हुआ? नारियल का दूध बकरी के दूध की जगह अच्छी तरह काम दे सकता है और बकरी के घी के बजाय हम नारियल का ताजा तेल निकालर खायेंगे।  
बापूजी बकरी का दूध हमेशा आठ औंस लेते थे, उसी तरह नारियल का दूध भी आठ औंस ही लिया। यह घटना 30 जनवरी 1947 के दिन की है। बापू की हत्या के ठीक एक साल पहले।
रामनाममें बापू की श्रद्धा जीवन के आखिरी क्षण तक कायम रहीं 1947 की 30वीं जनवरी को यह घटना घटी और 1948 की 30 जनवरी को बापू ने श्रीमनु बहिन से कहा कि- ‘आखिरी दम तक हमें रामनाम रटते रहना चाहिए। इस तरह आखिरी वक्त भी दो बार बापू के मुँह से रा...म। रा...म। सुनना मेरे ही भाग्य में बदा होगा। इसकी मुझे कल्पना थी? ईश्वर की गति कैसी गहन है।

मानवता के अनन्य पुजारी की पाशविक हत्या दिल्ली में 30 जनवरी 1948 की शाम 5 बजकर 5 मिनट पर उस वक्त की गयी जब वह बिडला भवन से निकलकर प्रार्थना सभा की ओर टहलते हुये जा रहे थे। बापू जी अपनी दो पोतियों के कंधें पर सहारे के तौर पर हाथ रखे चले जा रहे थे। तभी स्थल पर पहुँचने पर उपस्थित लोगों की भीड़ दो भागों में बंट गयी, ऐसा गांधी जी को मंच तक पहुँचने के लिए हुआ। इसी भीड़ में से एक युवक कोई दो गज के फासले पर खड़ा था। 30-35 वर्षीय इस युवक ने रिवाल्वर निकालर चार फायर किये। महात्मा जी के पेट में गोली लगी। हे रामउनके मुख से निकला और वहीं उनका प्राणांत हो गया।

महात्मा गांधी पर गोलियां चलाये जाने के समय उपस्थित एसोसियेटेड प्रेस के प्रतिनिधि का कहना था कि जब गांधी मंच से पन्द्रह गज की दूरी पर थे तो मैंने अपने से दो गज आगे पर गोली छूटने की आवाज सुनी, जिस व्यक्ति ने गोली चलायी, उसे मैंने देखा। उसके दाहिने हाथ में रिवाल्वर तना हुआ था, इसके बाद ही तीन बार और गोली चली, प्रतिनिधि का कहना था कि मैंने गांधी जी को मूर्च्छित होते देखा, ऐसा जान पड़ा कि उनके पेट में गोलियां लगी हैं। उनके शरीर से रक्त बहते और धवल धोती को रक्तरंजित होते देख मैं स्तम्भित हो गया। तुरन्त ही भगदड़ मची और मैं भी एक क्षण के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। तुरंत ही आक्रमणकारी के पीछे उपस्थित व्यक्ति उस पर टूट पड़े और उसकी कलाई पकड़ ली। उसका रिवाल्वर छूटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। आक्रमणकारी फौजी ढंग की एक कमीज और पतलून पहने था। पहरा देने वाली पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में लिया।

मृत्यु के समय गांधी जी ने यही चश्मा पहन रखा था।


प्रतिनिधि का कहना था कि मैं दौड़कर उस स्थान पर गया जहां गांधी जी गिरे थे, मैंने गांधी जी को खून से लथपथ होते देखा, उनके नेत्र बंद थे, उनका सिर झुक गया था, उनके दोनों हाथ पास-पास थे, मानों वे प्रार्थना कर रहे हों। उनकी पोतियों ने उन्हें थामकर बैठाया। तुरंत ही चार पांच व्यक्ति महात्मा गांधी को बिड़ला भवन ले गये जिस कमरे के भीतर गांधी जी ले जाये गये उसके दरवाजे बंद कर दिये गये और किसी भी दर्शक को उसके भीतर नहीं जाने दिया गया। प्रतिनिधि का कहना था कि मैं बिड़ला भवन में उपस्थित उत्सुक जनता के बीच खड़ा प्रतीक्षा करता रहा। 5.35 बजे मैंने बसंतलाल को मकान के बाहर आते देखा और मैंने उससे पूछा गांधी जी कैसे हैं? उन्होंने उत्तर

गांधी जी ने अंतिम श्वास यहीं ली थी


दिया कि गांधी जी अभी जीवित हैं। 5 मिनट बाद ही गांधी जी का एक अनुयायी उदास और शोक संतृप्त मुद्रा में गांधी जी के कमरे से बाहर आया और उसने कहा बापू स्वर्ग सिधार गये।


महात्मा गांधी के अन्त्येष्टि संस्कार के समय का दृश्य बहुत ही कारुणिक था, अन्त्येष्टि के समय पं. नेहरू और राजेन्द्र बाबू फूट-फूटकर रो पड़े, अर्थी के साथ दस लाख बिलखते नर-नारियों की भीड़ थी। महात्मा गांधी की हत्या के षडयंत्र में बम्बई की पुलिस ने पांच व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद 1 फरवरी को कानपुर के कुछ भागों में दंगा हो गया था। कई स्थानों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों तथा जनता के बीच संघर्ष हुये। सारे नगर में कर्फ्यू जारी कर दिया गया था तथा फौज बुला ली गयी थी। 12 फरवरी को देश विदेश के प्रमुख तीर्थ स्थानों में गांधी जी की अस्थियां प्रवाहित कर दी गयीं।

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